कम्म और कर्म में मूलभूत अंतर

इस धरती पर सबसे पहले गौतम बुद्ध ने यह उदघोष किया था—

“जैसा बोओगे, वैसा काटोगे।”

अर्थात्, जैसा कम्म करोगे, वैसा ही फल पाओगे।

लेकिन समय के साथ इस कम्म फल सिद्धांत को बदलकर दूसरों ने कर्म फल सिद्धांत बना दिया और उसका अर्थ ही उल्टा कर दिया। परिणाम यह हुआ कि बुद्ध का आत्मनिर्भर और विवेकशील संदेश दबकर एक भाग्यवाद और दासत्व को बढ़ावा देने वाले विचार में बदल गया।

1. कम्म और कर्म की भाषाई जड़ें

  • संस्कृत में कर्म का अर्थ है क्रिया।
  • पालि भाषा में कम्म भी क्रिया का ही पर्याय लगता है, लेकिन बुद्ध ने इसका अर्थ केवल बाहरी क्रिया तक सीमित नहीं रखा।
  • बुद्ध के अनुसार कम्म का संबंध मन में उत्पन्न विचारों और उनके द्वारा प्रेरित आचरण से है।

अर्थात्, हमारे जीवन का स्वरूप मन-वाणी-शरीर से किए गए कर्मों की परिणति है।

2. बुद्ध का मौलिक सिद्धांत: कम्म

बुद्ध कहते हैं—

“अत्ताहि अत्तनो नाथो, अत्ताहि अत्तनो गति।”

(मनुष्य स्वयं अपना स्वामी है, स्वयं अपनी गति बनाता है।)

इस दृष्टिकोण में:

  • सुख-दुख पूर्व जन्मों के कर्मों का परिणाम नहीं, बल्कि वर्तमान जीवन के आचरण का फल है।
  • दुख को दूर करना संभव है क्योंकि उसका कारण समझकर और उसे बदलकर कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को सुधार सकता है।
  • भाग्य कोई बाहरी शक्ति नहीं लिखती; हम ही अपने भाग्य के निर्माता हैं।

कुशल कम्म:

  1. मन से— बुरा न सोचना, लोभ-घृणा-क्रोध से बचना।
  2. वाणी से— झूठ, कटुता, व्यर्थ वचन न बोलना।
  3. शरीर से— चोरी, व्यभिचार, हिंसा न करना।

अकुशल कम्म दुख को ऐसे पीछे लगाए रखते हैं जैसे बैलगाड़ी का पहिया बैल के पीछे चलता है।

कुशल कम्म सुख को ऐसे साथ बनाए रखते हैं जैसे छाया कभी पीछे नहीं छोड़ती।

3. कर्म फल सिद्धांत की विकृति

जब बुद्ध का संदेश जन-जन तक फैला, तब बाद की परंपराओं ने इसे उलट दिया।

  • कर्म को “विधाता द्वारा लिखा हुआ भाग्य” बताकर मनुष्य को असहाय और दास बना दिया गया।
  • यह कहा जाने लगा कि गरीबी, बीमारी, अन्याय—सब “पूर्वजन्म के बुरे कर्मों का फल” है।
  • ऊँच-नीच और अन्याय को स्वीकार कराने के लिए यह धारणा फैलाई गई कि “उच्च वर्णों की सेवा करो, तो अगले जन्म में सुख मिलेगा।”

इस प्रकार कर्म का सिद्धांत सामाजिक-राजनीतिक शोषण का औज़ार बन गया।

4. आज की प्रासंगिकता

आज भी समाज में भाग्यवाद गहराई तक बैठा हुआ है। लोग अपने दुख को ईश्वर, विधाता या भाग्य पर डालकर चुपचाप सहते हैं।

लेकिन बुद्ध का कम्म सिद्धांत हमें याद दिलाता है कि—

  • मनुष्य स्वयं जिम्मेदार है।
  • परिवर्तन संभव है।
  • दुख का कारण समझकर और सही आचरण अपनाकर सुखी जीवन बनाया जा सकता है।

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