पी.एम. केयर्स फंड की कानूनी स्थिति: जनसेवा या जवाबदेही से पलायन?
1. कानूनी स्थिति और सरकारी दावा
दिल्ली उच्च न्यायालय में केंद्र सरकार ने यह स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और आपात स्थिति राहत कोष (PM CARES Fund) किसी संवैधानिक या वैधानिक प्रावधान के तहत निर्मित नहीं हुआ है।
यह न तो भारतीय संविधान में वर्णित किसी कोष (Fund) की श्रेणी में आता है,
न ही यह संसद या किसी राज्य विधानमंडल के अधिनियम द्वारा स्थापित है।
सरकार का दावा है कि यह एक “स्वतंत्र सार्वजनिक चैरिटेबल ट्रस्ट” है, जो पूर्णत: स्वैच्छिक अंशदानों पर चलता है और जिस पर न तो केंद्र और न ही राज्य सरकार का कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण है।
इसी आधार पर केंद्र सरकार का यह भी तर्क है कि पीएम केयर्स फंड सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) के तहत “Public Authority” नहीं है।
परंतु इस कथन की संवैधानिक वैधता और व्यावहारिक सच्चाई दोनों पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े होते हैं।
2. संवैधानिक ढाँचे में “राज्य” की परिभाषा (Article 12)
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 12 कहता है कि “राज्य” में भारत सरकार, संसद, राज्य सरकारें, विधानमंडल तथा ऐसे सभी प्राधिकरण शामिल हैं जो भारत के क्षेत्र में या भारत सरकार के नियंत्रणाधीन कार्य कर रहे हों।
अर्थात, यदि कोई संस्था
- सरकार द्वारा नियंत्रित हो,
- सरकारी संसाधनों का उपयोग कर रही हो, या
- सरकारी पदाधिकारियों द्वारा संचालित हो,
तो उसे “State” या “Instrumentality of State” माना जा सकता है।
इस दृष्टि से, पीएम केयर्स फंड —
- जिसके ट्रस्टी प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री हैं,
- जो सरकारी वेबसाइटों और प्रतीकों का उपयोग करता है,
- तथा जिसके लिए सरकारी कर्मचारियों और संस्थानों से धन एकत्र किया गया —
संविधान के अनुच्छेद 12 के अर्थ में राज्य का एक अंग माना जा सकता है।
3. संवैधानिक वित्तीय प्रावधान (Articles 266, 267, 283)
संविधान के अनुसार,
- अनुच्छेद 266 — सभी राजस्व और सरकारी धन Consolidated Fund of India या Public Account of India में जमा होंगे।
- अनुच्छेद 267 — आपातकालीन स्थिति या आपदा से निपटने हेतु Contingency Fund और Disaster Response Fund का निर्माण राज्य और केंद्र दोनों स्तर पर किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 283 — इन सभी फंड्स के रखरखाव और संचालन का तरीका संसद द्वारा बनाए गए कानूनों से विनियमित होगा।
जब राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF) पहले से संविधान के अनुरूप स्थापित था, तो प्रधानमंत्री द्वारा समान उद्देश्य वाला एक “ट्रस्ट फंड” बनाना संवैधानिक ढाँचे के समानांतर एक निजी संरचना स्थापित करना प्रतीत होता है।
यह प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि कोई भी सरकारी कार्यवाही संविधान के बाहर नहीं हो सकती।
4. न्यायिक दृष्टांत और पीएम केयर्स पर उनकी प्रासंगिकता
(क)
Thalappalam Service Cooperative Bank Ltd. v. State of Kerala
, (2013) 16 SCC 82
सुप्रीम कोर्ट ने कहा —
“किसी संस्था को ‘Public Authority’ घोषित करने के लिए यह पर्याप्त है कि वह सरकारी नियंत्रण में कार्य कर रही हो, या सरकारी संसाधनों का उपयोग कर रही हो।”
इस निर्णय में “सरकारी नियंत्रण” का अर्थ केवल प्रत्यक्ष प्रशासनिक नियंत्रण नहीं, बल्कि substantial control (व्यापक प्रभाव और मार्गदर्शन) बताया गया।
पीएम केयर्स पर लागू करने पर यह साफ दिखता है कि इसका संचालन प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों द्वारा किया जाता है — जो इसे “substantially controlled” बनाता है।
(ख)
Subhash Chandra Agarwal v. Office of the Chief Justice of India
, (2019) 16 SCC 689
इस ऐतिहासिक निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पारदर्शिता लोकतंत्र की आत्मा है, और कोई भी सार्वजनिक प्राधिकरण गोपनीयता की आड़ में जवाबदेही से नहीं बच सकता।
यह सिद्धांत पीएम केयर्स के मामले में सीधा लागू होता है: यदि जनता के नाम पर फंड एकत्र किया गया, तो जनता को उसके उपयोग की जानकारी का संवैधानिक अधिकार है।
5. सरकारी नियंत्रण और “निजी” होने का विरोधाभास
सरकार कहती है कि पीएम केयर्स फंड एक निजी ट्रस्ट है।
परंतु निम्न तथ्यों से यह दावा तार्किक रूप से टिकता नहीं:
- फंड का नाम “Prime Minister’s Citizen Assistance and Relief in Emergency Situations” है — अर्थात इसमें संवैधानिक पदनाम का उपयोग है।
- सरकारी पोर्टलों और प्रेस विज्ञप्तियों में इसे “सरकारी पहल” के रूप में प्रचारित किया गया।
- कई सरकारी विभागों और सार्वजनिक उपक्रमों से धन संग्रह कराया गया।
- ट्रस्टियों में केवल केंद्रीय मंत्रिपरिषद के सदस्य शामिल हैं, किसी स्वतंत्र नागरिक या विपक्षी सदस्य को स्थान नहीं दिया गया।

इन तथ्यों से यह प्रतीत होता है कि “निजी” कहने का उद्देश्य केवल RTI और CAG ऑडिट से बचना है, न कि वास्तविक निजीकरण।
6. पारदर्शिता और जवाबदेही के प्रश्न
- RTI से छूट: पीएम केयर्स फंड को “Public Authority” न मानने से यह जनता के प्रश्नों से मुक्त हो गया।
- CAG ऑडिट से छूट: नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक को इस फंड की जाँच का अधिकार नहीं।
- FCRA से छूट: इसे विदेशी चंदे की विशेष अनुमति मिली हुई है, जबकि अन्य NGOs पर सख्त प्रतिबंध हैं।
- NDRF की उपेक्षा: संवैधानिक रूप से स्थापित आपदा राहत कोष को दरकिनार कर समानांतर निजी ट्रस्ट बनाना एक संस्थागत दोहराव और कानूनी अस्पष्टता पैदा करता है।
7. कानूनी उल्लंघन और नैतिक विरोधाभास
- भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882 के तहत ट्रस्टी निष्पक्ष और हितों के टकराव से मुक्त रहना चाहिए। पर यहाँ ट्रस्टी वही हैं जो सरकारी नीतियाँ बनाते हैं।
- State Emblem of India (Prohibition of Improper Use) Act, 2005 के अनुसार, निजी निकायों द्वारा राष्ट्रीय प्रतीकों का उपयोग निषिद्ध है।
- इसलिए पीएम केयर्स द्वारा “राष्ट्रीय प्रतीक” और “प्रधानमंत्री” पदनाम का उपयोग स्वयं इस अधिनियम के उल्लंघन का प्रश्न उठाता है।
8. मूलभूत प्रश्न: जनहित बनाम जवाबदेही
यह पूरा विवाद केवल तकनीकी नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक नैतिकता का प्रश्न है।
यदि कोई फंड प्रधानमंत्री के नाम से चलता है, सरकारी संसाधनों से संचालित होता है, और जनता से धन लेता है —
तो उसे जनता के प्रति पारदर्शी और जवाबदेह होना ही चाहिए।
संविधान ने स्पष्ट किया है कि राज्य के सभी कार्य “जनहित” और “कानून के शासन (Rule of Law)” के अंतर्गत आने चाहिए।
यदि सरकार अपने नियंत्रण वाले ट्रस्ट को “निजी” कहकर जवाबदेही से मुक्त रखती है, तो यह संवैधानिक शासन के मूल सिद्धांत — पारदर्शिता, समानता, और जवाबदेही — की आत्मा के विरुद्ध है।
9. निष्कर्ष: संवैधानिकता बनाम सत्ता-केन्द्रित परोपकार
पीएम केयर्स फंड आधुनिक भारत की उस प्रशासनिक प्रवृत्ति का प्रतीक है जिसमें “परोपकार” को “संवैधानिक उत्तरदायित्व” के स्थान पर रख दिया गया है।
यह फंड जनता के भरोसे की अपील तो करता है, पर जवाबदेही से खुद को मुक्त रखता है —
मानो लोकतंत्र में विश्वास दायित्व नहीं बल्कि विकल्प हो।
संविधान की दृष्टि से,
- जो संस्था सरकार द्वारा नियंत्रित है,
- सार्वजनिक संसाधनों का उपयोग करती है,
- और जनहित में कार्य करने का दावा करती है,
वह “State under Article 12” है —
और उसे सूचना, ऑडिट और न्यायिक परीक्षण के लिए उत्तरदायी होना ही चाहिए।
अन्यथा, यह व्यवस्था जनता के नाम पर चलती हुई भी जनता से ऊपर हो जाएगी।
समापन कथन
“लोकतंत्र की आत्मा जनविश्वास है, और जनविश्वास का आधार पारदर्शिता।
जब जनसेवा कोष जवाबदेही से ऊपर हो जाए, तब सेवा भी सत्ता का औजार बन जाती है।”

