रामायण: एक ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक विश्लेषण

यह लेख रामायण को एक ऐतिहासिक ग्रंथ के रूप में स्वीकार करने पर सवाल उठाता है और इसके लिए भाषाई, पुरातात्विक तथा आंतरिक साक्ष्यों का विश्लेषण प्रस्तुत करता है। मूल उद्देश्य पाठकों को एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना है।

मुख्य प्रश्न: रामायण की रचना कब हुई?

लेखक का मुख्य तर्क है कि रामायण की रचना उस समय हुई जब इसकी घटनाओं का कोई ठोस पुरातात्विक साक्ष्य मौजूद नहीं था। यह बताया गया है कि सम्राट अशोक (ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी) जैसे शासकों के शिलालेखों में, जो पाली और प्राकृत में हैं, रामायण, महाभारत या वेदों का कोई उल्लेख नहीं मिलता। इससे संकेत मिलता है कि संस्कृत में लिखी गई रामायण की रचना इन शिलालेखों के बहुत बाद में हुई होगी।

भाषाई साक्ष्य: बौद्ध प्रभाव

पाठ में रामायण में प्रयुक्त कुछ विशिष्ट शब्दों पर प्रकाश डाला गया है, जैसे ‘चैत्य’ और ‘देव’। यह दावा किया गया है कि ये शब्द मूल रूप से बौद्ध और जैन साहित्य में प्रचलित थे। संस्कृत शब्दकोशों के हवाले से बताया गया है कि ‘चैत्य’ का अर्थ ‘बुद्ध मंदिर’ या ‘बुद्ध की मूर्ति’ होता है। रामायण में इन शब्दों के प्रयोग से लेखक यह सिद्ध करना चाहता है कि इसकी रचना बौद्ध धर्म के प्रसार के बाद हुई, जब ये शब्द आम उपयोग में आ चुके थे।

इसके अलावा, उत्तर कांड के एक श्लोक (अयोध्या कांड 109.34) का हवाला देकर यह दिखाया गया है कि इसमें सीधे तौर पर बुद्ध (‘तथागत’) और बौद्ध मतावलंबियों की निंदा की गई है। इससे लेखक का तर्क और मजबूत होता है कि रामायण बुद्ध के समय के बाद लिखी गई, क्योंकि यदि यह उनसे पहले की होती तो उनका नाम इसमें शामिल नहीं होता।

पुरातात्विक साक्ष्यों का अभाव

लेख में दावा किया गया है कि रामायण में वर्णित स्थानों—जैसे अयोध्या, श्रृंगवेरपुर, भरद्वाज आश्रम, नंदीग्राम और चित्रकूट—पर की गई पुरातात्विक खुदाइयों (विशेषकर डॉ. बी.बी. लाल के नेतृत्व में) में रामायण काल से जुड़े कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिले हैं। खुदाई से प्राप्त सबसे पुराने अवशेष (उत्तरी काले चमकदार मृदभांड) ईसा पूर्व सातवीं-आठवीं शताब्दी से पहले के नहीं हैं। इसका अर्थ यह है कि इन स्थानों पर उससे पहले कोई विकसित सभ्यता नहीं बसी थी, जबकि रामायण इन्हें अत्यंत प्राचीन और विकसित नगरों के रूप में चित्रित करती है।

रामायण की कथा का विकास

लेखक के अनुसार, राम की कहानी का विकास क्रमिक रूप से हुआ:

1. बौद्ध जातक कथाएँ: सबसे पहले ‘दशरथ जातक’ नामक बौद्ध कथा में राम, लक्ष्मण, सीता और भरत की कहानी का एक प्रारंभिक रूप मिलता है, जहाँ सीता राम की बहन हैं और रावण जैसा कोई पात्र नहीं है।

2. जैन रामायण: बाद में जैन साहित्य में रावण का चरित्र और सीता हरण की कथा जुड़ी।

3. वर्तमान रामायण: अंतिम रूप से वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस की रचना हुई, जिसमें कहानी को और विस्तार दिया गया।

यह भी दावा किया गया है कि मूल वाल्मीकि रामायण में केवल 12,000 श्लोक थे, जिन्हें बाद में बढ़ाकर 24,000 कर दिया गया।

विद्वानों की राय


– हरमन जैकोबी: रामायण एक ही समय में नहीं लिखी गई, इसमें कई परतें हैं।


– रोमिला थापर: यह ऐतिहासिक ग्रंथ नहीं बल्कि सांस्कृतिक स्मृति है। स्थलों पर मिले प्रमाण रामायण काल की समृद्ध सभ्यता को सिद्ध नहीं करते। रामायण का वास्तविक मूल्य सांस्कृतिक प्रभाव में है।


– ए.एल. बाशाम: यह भारतीय आदर्शों और नैतिकता का महाकाव्य है। रामायण घटनाओं का ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है।


– डी.एन. झा: रामायण को ऐतिहासिक स्रोत मानना गलत।

– बाशाम: रामायण भारतीय नैतिकता का प्रतिबिंब।


– शेल्डन पोलॉक: रामकथा ने धर्म, शक्ति और राज्य की अवधारणा को गढ़ा।

निष्कर्ष

रामायण एक साहित्यिक रचना है, न कि एक ऐतिहासिक दस्तावेज। इसकी रचना बौद्ध धर्म के उदय के बाद, संभवतः मुगल काल के आस-पास हुई, और इसमें पूर्ववर्ती साहित्यिक परंपराओं (जैसे बौद्ध जातक कथाएँ और अश्वघोष के ‘बुद्धचरित’) के तत्वों का समावेश किया गया। पुरातात्विक साक्ष्यों के अभाव और भाषाई विश्लेषण के आधार पर, लेखक पाठकों से आग्रह करता है कि वे अंधविश्वास से परे एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएँ और इन तथ्यों को स्वयं जाँच-परख कर देखें।

रामायण ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं है। अशोक शिलालेखों में रामायण का उल्लेख नहीं मिलता। भाषाई साक्ष्य इसे बौद्ध धर्म के बाद का बताते हैं। रामकथा का विकास क्रमिक है। अयोध्या खुदाई से रामायण कालीन नगर का प्रमाण नहीं। अन्य स्थलों पर भी ठोस साक्ष्य अनुपस्थित। रामसेतु प्राकृतिक संरचना है। विद्वानों की सहमति: रामायण साहित्यिक महाकाव्य है, न कि ऐतिहासिक दस्तावेज। रामकथा का विकास साहित्य से लोककला तक फैला। तुलसीदास की रामचरितमानस ने इसे जन-जन तक पहुँचाया। क्षेत्रीय रामायणों ने विविधता में एकता दिखाई। आधुनिक राजनीति तक इसका प्रभाव स्पष्ट है।

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