बुलडोजर राज और संवैधानिक लोकतंत्र संकट में

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई का यह स्पष्ट चेतावनीभरा कथन – “सरकार एक साथ न्यायाधीश, जूरी और जल्लाद नहीं बन सकती” – आज के राजनीतिक परिवेश में और भी अधिक प्रासंगिक हो गया है। उन्होंने जिस ‘बुलडोजर राज’ की ओर इशारा किया, वह केवल एक शब्द नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के लिए एक गहरा संकट है। यह संकेत उस प्रवृत्ति की ओर है जहाँ कार्यपालिका न्यायपालिका के दायित्वों पर अतिक्रमण करती नज़र आ रही है।

अनुच्छेद 21: केवल एक धारा नहीं, जीवन का आधार

संविधान का अनुच्छेद 21 किसी भी नागरिक के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी देता है। यह केवल एक कानूनी प्रावधान नहीं, बल्कि लोकतंत्र की बुनियाद है। इसकी रक्षा करना केवल न्यायपालिका का ही नहीं, बल्कि सरकार का भी संवैधानिक दायित्व है। जब सरकारें बिना किसी पारदर्शी कानूनी प्रक्रिया के कार्य करती हैं, तो वे न केवल इस अनुच्छेद का उल्लंघन करती हैं, बल्कि संविधान के मूल ढाँचे को भी कमज़ोर करती हैं।

शक्ति पृथक्करण: लोकतंत्र की आत्मा

भारत का संविधान शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत पर आधारित है। न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका एक-दूसरे की स्वतंत्रता और अधिकारों का सम्मान करते हुए कार्य करती हैं। जब सरकारें न्यायिक प्रक्रिया को दरकिनार करके सीधी कार्रवाई करती हैं, तो यह सिद्धांत टूटता है। इससे एक ऐसी व्यवस्था जन्म लेती है जहाँ नागरिकों के अधिकारों की रक्षा का कोई माध्यम नहीं बचता।

बुलडोजर राज: प्रतीक और वास्तविकता

‘बुलडोजर राज’ शब्द आज एक प्रतीक बन गया है – यह कानून के शासन के स्थान पर ‘बल के शासन’ का प्रतीक है। यह प्रवृत्ति नागरिकों में भय पैदा करती है और उनके मौलिक अधिकारों को कुचलती है। जब सरकारें स्वयं आरोप लगाती हैं, सबूत जुटाती हैं और सजा देती हैं, तो यह न्यायिक प्रक्रिया का मखौल उड़ाने जैसा है। इससे समाज में अराजकता फैलती है और लोकतंत्र की नींव हिलती है।

नागरिकों की भूमिका: जागरूकता और सतर्कता

लोकतंत्र की सफलता नागरिकों की सजगता पर निर्भर करती है। जब भी संवैधानिक मूल्यों को चुनौती मिलती है, नागरिकों का कर्तव्य है कि वे आवाज़ उठाएँ। समाज के हर वर्ग – मीडिया, शिक्षाविद, सामाजिक कार्यकर्ता और आम नागरिक – को संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए आगे आना होगा।

निष्कर्ष: संविधान बचाने की ज़िम्मेदारी

मुख्य न्यायाधीश गवई की चेतावनी को गंभीरता से लेने का समय आ गया है। सरकारों को यह समझना होगा कि उनकी शक्ति संविधान से उत्पन्न होती है और उसी में सीमित है। बुलडोजर राज जैसी प्रवृत्तियाँ न केवल अनुच्छेद 21 का, बल्कि संपूर्ण लोकतांत्रिक ढाँचे का उल्लंघन हैं। भारत को एक ऐसे भविष्य की ओर बढ़ना चाहिए जहाँ कानून का शासन सर्वोपरि हो, न कि बल का।

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