2025: एक बदलती वैश्विक व्यवस्था और भारत की स्थिति

वर्ष 2025 दुनिया के सामने एक ऐसा मोड़ लेकर आया है जो भौगोलिक, सामरिक और व्यापारिक दृष्टिकोण से सब कुछ बदलने की स्थिति पैदा कर रहा है। इस वैश्विक परिवर्तन ने तमाम देशों को एक नई चुनौती के सामने खड़ा कर दिया है, और भारत भी इससे अछूता नहीं है।

भारत के बदलते अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत के लिए चीन के मायने पहले और आज बहुत बदल गए हैं। वहीं, रूस के साथ संबंधों में एक नया मोड़ आया है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अब भारत के प्रधानमंत्री, भारत की संप्रभुता और भविष्य के कूटनीतिक व व्यापारिक संबंधों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को लेकर स्पष्ट और मुखर हैं। इसी तरह, अमेरिका के साथ संबंध भी नए सिरे से परिभाषित हो रहे हैं। जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गाजा के लिए शांति फॉर्मूला प्रस्तावित किया, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सात अलग-अलग भाषाओं में ट्वीट करके इसका समर्थन किया, जिसे ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर साझा किया। यह घटना दोनों देशों के बीच रणनीतिक संवाद की निरंतरता को दर्शाती है।

भारत की घरेलू राजनीति पर वैश्विक प्रभाव

इन वैश्विक उथल-पुथलों का सीधा असर भारत की घरेलू राजनीति पर पड़ रहा है। इसका एक उदाहरण विपक्ष के नेता राहुल गांधी की अंतरराष्ट्रीय यात्राएँ हैं। उनकी पहचान अब सिर्फ एक सांसद के रूप में नहीं, बल्कि विपक्ष के नेता (लीडर ऑफ द ऑपोजिशन) के रूप में है। कोलंबिया जैसे देशों में उनके स्वागत और नेहरू-गांधी परिवार की विरासत के जिक्र ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की आंतरिक राजनीतिक गतिशीलता पर प्रकाश डाला है। राहुल गांधी ने विदेशों में भारत में लोकतंत्र पर हो रहे हमलों, बीजेपी और आरएसएस की भूमिका तथा देश की बहुलवादी पहचान के खतरे को लेकर सवाल उठाए हैं। उनका तर्क है कि भारत की लोकतांत्रिक संरचना, जो विविधताओं के बीच संवाद पर टिकी है, पर संकट है।

सत्ता और विपक्ष की अंतरराष्ट्रीय रणनीति

इसके जवाब में, सत्ता पक्ष ने अक्सर यह आरोप लगाया है कि विपक्ष देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम कर रहा है। राहुल गांधी इसका प्रत्युत्तर प्रधानमंत्री मोदी के पुराने बयानों, जैसे “पिछले 70 सालों में कुछ नहीं हुआ”, को आधार बनाकर देते हैं। उनका कहना है कि ऐसे बयान देश के उन सभी नागरिकों का अपमान हैं जिन्होंने इन दशकों में देश का निर्माण किया। इस प्रकार, अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की छवि को लेकर सत्ता और विपक्ष के बीच एक नैरेटिव का युद्ध छिड़ा हुआ है।

भू-राजनीति में भारत की उलझनें और रणनीतिक दुविधाएँ

वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत कई रणनीतिक दुविधाओं से घिरा हुआ है:

· अमेरिका बनाम रूस-चीन: भारत पारंपरिक मित्र रूस और उभरती महाशक्ति चीन के साथ संबंध बनाए रखने की कोशिश कर रहा है, जबकि अमेरिका के साथ भी उसके रणनीतिक हित जुड़े हैं। रूस से तेल खरीद को लेकर अमेरिकी दबाव के बावजूद, पुतिन ने स्पष्ट कहा है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा।

· मुद्रा और व्यापार: अमेरिका द्वारा डॉलर को चुनौती देने के विरोध के बीच, भारत ने नेपाल, भूटान और श्रीलंका के साथ लेन-देन में रुपए के उपयोग को बढ़ावा देने की दिशा में कदम उठाए हैं।

· पड़ोसी और मध्य पूर्व: इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष जैसे मुद्दों पर भारत की भूमिका और उसके रुख पर अंतरराष्ट्रीय नजर टिकी है।

निष्कर्ष: 2025 का निर्णायक स्वरूप

इन सभी घटनाक्रमों के मद्देनजर कुछ बुनियादी सवाल उभरते हैं:

1. क्या प्रधानमंत्री मोदी का अंतरराष्ट्रीय कद सिकुड़ रहा है और क्या इससे घरेलू स्तर पर विपक्षी नेता राहुल गांधी को लाभ मिल रहा है?

2. क्या अंतरराष्ट्रीय शक्तियाँ (अमेरिका, रूस, चीन) भारत को एक समकक्ष महाशक्ति के रूप में स्वीकार करने को तैयार हैं?

3. क्या भारत की आंतरिक राजनीति पर वैश्विक शक्तियों का प्रभाव बढ़ रहा है?

4. क्या भारत अमेरिका, रूस और चीन के बीच संतुलन बनाए रख पाएगा, खासकर तब जब चीन पाकिस्तान का मजबूत सहयोगी है और अमेरिका भारत का प्रमुख आर्थिक साझेदार?

5. क्या देश की राजनीति पर कॉर्पोरेट पूंजी और वैश्विक हस्तक्षेप का प्रभाव बढ़ेगा?

इन सवालों के उत्तर 2025 की दिशा तय करेंगे। यह वर्ष भारत के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है, जहाँ घरेलू राजनीति और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का अंतर्संबंध देश के भविष्य की राह तय करेगा।

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