अंतिम शाम
एक संस्मरण |
🏠 पुराने घर की खामोशी
सर्दियों की शाम थी। सूरज धीरे-धीरे ढल रहा था और पीली रोशनी मेरे बचपन के आंगन को सुनहरा रंग दे रही थी।
मैं अपने पुराने पुश्तैनी घर लौटा था, वर्षों बाद—पापा के कहने पर।
पापा अब पहले जैसे नहीं रहे थे।
शरीर कमजोर, आंखों में धुंध, पर चेहरे पर वही गंभीर शांति।
उन्होंने मुझे फ़ोन पर बस इतना कहा था—
“बेटा, एक बार घर आ जाओ… शायद यह हमारी आख़िरी शाम साथ हो।”
🚪 बीते हुए लम्हों की दस्तक
जैसे ही घर में कदम रखा, हर दीवार, हर कोना मुझे देख रहा था।
बचपन के पंखे की आवाज़, रसोई से आती अदरक की चाय की खुशबू,
वो मां की सिलाई मशीन जो अब चुप थी,
और आंगन का नीम का पेड़… सब कुछ वैसा ही था,
बस समय बहुत आगे निकल गया था।
👴 पिता के साथ बैठकी
पापा कुर्सी पर बैठे थे, एक कंबल ओढ़े,
सामने की खाली कुर्सी की ओर इशारा किया—
“बैठो, ज़रा बात करें…”
मैं चुपचाप बैठ गया।
कुछ देर तक सिर्फ हवा की आवाज़ थी।
फिर उन्होंने कहा—
“तुम्हारे बचपन की हर छोटी बात मुझे याद है,
पर शायद मैं तुम्हारा बचपन ठीक से जी नहीं पाया।”
🌫️ अनकहे अफ़सोस
मैंने पहली बार उनके चेहरे पर पछतावे की झलक देखी।
उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा—
“जब तुम गिरते थे, मैं डांटता था, उठाता नहीं था।
जब तुम रोते थे, मैं चुप कराता था, समझता नहीं था।
सोचा था मर्द बनाओंगा…
पर भूल गया कि इंसान पहले समझा जाता है, फिर बनाया जाता है।”
🫱 मौन में छिपा माफ़ी
मैं कुछ कह नहीं पाया।
उनकी आँखें नम थीं, और मेरी आवाज़ कहीं अंदर ही टूट रही थी।
उन्होंने मेरी ओर देखा,
हल्की मुस्कान के साथ बोले—
“शायद बहुत कुछ कहने को था, पर वक़्त हाथ से फिसल गया।
अब बस ये अंतिम शाम है, बेटा…
चाहता हूँ, इसे ख़ामोशी नहीं, बातों से भर दें।”
🫂 रिश्तों की मिठास लौट आई
हमने बहुत कुछ बात किया उस शाम—
बचपन की शरारतें, मां की यादें,
उनकी जवानी की कहानियाँ, और मेरी अधूरी कविताएँ।
वो मुस्कुरा रहे थे, और मैं उनके कंधे पर सिर रखे
पहली बार महसूस कर रहा था —
“मैं अपने पापा के करीब हूँ,
शायद पहली और आख़िरी बार इतने पास।”
🌌 अंतिम विदा
अगली सुबह जब सूरज उगा,
पापा नहीं जागे।
वो अंतिम शाम सच में “अंतिम” साबित हुई।
पर मैं संतुष्ट था…
क्योंकि उस एक शाम ने
सालों की चुप्पी तोड़ दी थी।
💭 जीवन की सीख
- वक़्त रहते बात कर लो,
वरना एक चुप्पी ज़िंदगी भर साथ रहती है। - रिश्तों को शब्द दो—
“मैं तुमसे प्यार करता हूँ”, “माफ़ कर दो”, “गर्व है मुझे तुम पर” —
ये तीन वाक्य किसी को ज़िंदगी दे सकते हैं। - अंतिम शाम हर किसी की ज़िंदगी में आती है,
पर उससे पहले सच्चे रिश्ते निभाना सबसे बड़ा धर्म है।
🌿 अंतिम पंक्तियाँ
वो कुर्सी अब भी आंगन में रखी है,
पापा की आख़िरी शाम की गवाह बनी हुई।
जब-जब शाम ढलती है,
मैं वहीं बैठकर आंखें बंद करता हूँ…
और पापा की वो आवाज़ फिर कानों में गूंजती है—
“बैठो बेटा… ज़रा बात करें…”

