तेरे ख़तों की ख़ुशबू
तेरे ख़तों की ख़ुशबू में,
तेरा चेहरा नज़र आता है।
हर अक्षर में धड़कन बनकर,
दिल को छू जाता है।
न पढ़ता हूँ, बस छूता हूँ,
तेरे शब्दों को जीता हूँ।
‘प्रिय’ कहने की आहट से,
साँसों में तू समाता है।
चाँदनी रातों की खामोशी में,
तेरी यादें दुआ बन जाती हैं।
तेरे बिना कुछ भी पूरा नहीं,
तेरे ख़त ही ज़िंदगी कहलाती हैं।

