पेट्रोल-डीज़ल टैक्स तुलना: 2014 बनाम वर्तमान
| पहलू | पहले (2014 / उससे पहले) | अब / वर्तमान |
|---|---|---|
| Excise duty (centre) | ~₹9.48/लीटर (पेट्रोल) ~₹3.56/लीटर (डीज़ल) |
~₹32.98/लीटर (पेट्रोल) ~₹31.80/लीटर (डीज़ल) |
| राज्य VAT / बिक्री कर | विविध, राज्य-निहित | अभी भी राज्य स्तर पर VAT/सेल्स टैक्स लागू है, दरें अधिक हैं |
| टैक्स हिस्सेदारी कुल मूल्य में | मध्यम | लगभग 50% या उससे अधिक हिस्सा टैक्स का |
| Crude Oil Price / विश्व दर | 2014–15 में ऊँची, पर अपेक्षाकृत "कम टैक्स" के कारण खुदरा दबाव कम | अब crude दर ऊँची है, पर टैक्स हिस्सेदारी बहुत अधिक |
| उपभोक्ता वादा vs हकीकत | अपेक्षाकृत कम टैक्स बोझ | टैक्स बोझ बहुत बढ़ गया, वादा (₹35/लीटर) खोखला लगता है |
GST : ‘एक राष्ट्र, एक कर’ का वादा और उपभोक्ता की लूट
1. प्रस्तावना: वादे और उम्मीदें
2017 में जब वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू किया गया तो सरकार ने इसे “भारत के कर इतिहास का सबसे बड़ा सुधार” कहा। नारा था—“One Nation, One Tax, One Market”।
इस नारे ने आम उपभोक्ता में आशा पैदा की कि अब पूरे देश में हर वस्तु और सेवा पर एक ही टैक्स लगेगा, महँगाई घटेगी, जटिलता कम होगी और कारोबारी भी राहत महसूस करेंगे।
लेकिन सात साल बाद तस्वीर यह है कि कर संग्रहण तो बढ़ा, पर उपभोक्ता पर बोझ घटा नहीं।
दाल, दूध, बिस्कुट, दवाइयाँ, बीमा प्रीमियम—हर चीज़ के दाम लगातार बढ़ते गए।
औसत आय उतनी नहीं बढ़ी जितनी महँगाई।
यही कारण है कि उपभोक्ता में यह धारणा बनी कि GST “गुड्स एंड सिंपल टैक्स” नहीं, बल्कि “गुड्स एंड स्ट्रेस टैक्स” बन गया।
2. GST से पहले की कर व्यवस्था – एक झलक
GST से पहले भारत में कर प्रणाली बेहद जटिल थी:
• केंद्र: एक्साइज़ ड्यूटी, सर्विस टैक्स, केंद्रीय बिक्री कर, कस्टम्स ड्यूटी, शिक्षा उपकर।
• राज्य: VAT, ऑक्ट्रॉय/एंट्री टैक्स, लक्ज़री टैक्स, मनोरंजन कर, खरीद कर।
इससे:
• एक ही वस्तु पर बार-बार कर लगता (Tax on Tax)।
• राज्यों की अलग-अलग दरों से भ्रम और असमानता।
• अंतरराज्यीय व्यापार में बाधाएँ।
इन खामियों को दूर करने के लिए GST लाया गया।

3. GST का ढाँचा: वादा और हकीकत
सरकार ने कहा—“एक राष्ट्र, एक कर।”
लेकिन वास्तविकता में “Dual GST Model” बना:
• CGST – केंद्र का हिस्सा
• SGST – राज्य का हिस्सा
• IGST – अंतरराज्यीय लेन-देन
• UTGST – केंद्र शासित प्रदेश
यानी उपभोक्ता के लिए यह एक टैक्स नहीं, बल्कि दो हिस्सों वाला टैक्स हो गया।
ऊपर से, पेट्रोल-डीजल, बिजली, शराब जैसी चीज़ें GST के दायरे से बाहर रहीं—जो आम खर्च के बड़े हिस्से हैं।
इसलिए नारा “One Nation, One Tax” शुरू से ही अधूरा रह गया।
4. GST के स्लैब – जटिलता बरकरार
GST लागू हुआ तो पांच मुख्य स्लैब बने:
• 0% (आवश्यक वस्तुएँ)
• 5%
• 12%
• 18%
• 28% (लक्ज़री/हानिकारक वस्तुएँ)
सोने पर 3%, कीमती पत्थरों पर 0.25%।
सरकार ने समय-समय पर इन स्लैब में बदलाव किए—कभी घटाए, कभी बढ़ाए।
अगर यह सचमुच “एक सरल टैक्स” होता तो इतने स्लैब और बार-बार बदलाव की जरूरत नहीं पड़ती।
यह बताता है कि शुरुआत में समग्र अध्ययन और यथार्थवादी दर-निर्धारण नहीं किया गया—यानी यह एक तरह से premature decision था।
5. उपभोक्ता पर असर: दाम बढ़े, राहत नहीं
GST लागू होने के बाद:
• पैकेज्ड फूड आइटम (दाल, आटा, चावल) पर 5% टैक्स लगा।
• बीमा प्रीमियम पर अलग से 18% GST जुड़ गया, जबकि पहले सर्विस टैक्स इम्बेडेड था (1–3% प्रभावी)।
• छोटे-छोटे शुल्क (ई-वे बिल, ई-इनवॉइस) से व्यापारी परेशान, पर उसका असर भी उपभोक्ता तक।
परिणाम:
दूध, बिस्कुट, दवाइयाँ, स्कूल फीस जैसी आवश्यक सेवाओं के दाम लगातार बढ़ते रहे।
बीमा प्रीमियम भी महँगे हुए।
उसी अनुपात में न सैलरी बढ़ी, न आय।
सरकार को रिकॉर्ड कर संग्रहण मिला—लेकिन आम आदमी को कीमतों में राहत नहीं मिली।

6. बीमा प्रीमियम – उपभोक्ता का अनुभव बनाम सरकारी तकनीकी भाषा
GST से पहले भी सर्विस टैक्स था, पर वह प्रीमियम में छुपा हुआ था।
इसलिए उपभोक्ता को “प्रीमियम + टैक्स” का अलग झटका नहीं दिखता था।
GST के बाद बीमा कंपनियों ने प्रीमियम घटाए बिना ऊपर से GST जोड़ दिया।
तकनीकी रूप से यह “Dual Tax” नहीं था, लेकिन उपभोक्ता के अनुभव में यह दोहरी मार बन गया।
यह उपभोक्ता के साथ अन्याय था—अगर टैक्स हटाकर GST लाया गया तो बेस प्रीमियम घटाना चाहिए था, ताकि कुल बोझ बराबर रहे।
लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
अब जाकर सितंबर 2025 से सरकार ने व्यक्तिगत जीवन और स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम पर GST हटा दिया—यानी वही किया जो पहले करना चाहिए था।

7. आठ साल में सरकार को कितना राजस्व मिला
आधिकारिक डेटा (PIB/CBIC) के अनुसार:
• 2017–18 से 2024–25 तक (8 साल) GST संग्रहण ~ ₹118–119 लाख करोड़।
• 2009–10 से 2016–17 तक (8 साल) केंद्र के अप्रत्यक्ष कर (कस्टम्स + एक्साइज़ + सर्विस टैक्स) ~ ₹40.7 लाख करोड़।
(राज्यों के VAT जोड़ने पर यह ~60 लाख करोड़ के आसपास होगा।)

इसका मतलब—GST काल में सरकार ने उपभोक्ताओं से दोगुना से भी अधिक वसूला।
और यह सब उस समय हुआ जब:
• पेट्रोल-डीजल पर अब भी पुराने कर (एक्साइज़ + वैट) जारी रहे।
• बिजली और शराब पर GST नहीं आया।
• महँगाई लगातार बढ़ी।
यानी कराधान का भार पूरी तरह उपभोक्ताओं पर स्थानांतरित हो गया।

8. सरकार की प्राथमिकताएँ: उपभोक्ता बनाम राजनीति
कर संग्रहण बढ़ने के बाद अपेक्षा थी कि स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार सृजन जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ेगा।
लेकिन आलोचना यह रही कि बड़े हिस्से का उपयोग “इंफ्रास्ट्रक्चर शो-केसिंग” और “राजनीतिक मार्केटिंग” में अधिक हुआ, जनकल्याण के अनुपात में नहीं।
उपभोक्ता की नज़र में यह “अय्याशी में टैक्स का पैसा उड़ाना” लगता है।
9. GST के लाभ – जो मिले भी
• पूरे देश में एक समान कर प्रणाली बनी।
• अंतरराज्यीय व्यापार आसान हुआ।
• Input Tax Credit ने व्यवसायियों को राहत दी।
• टैक्स चोरी पर कुछ नियंत्रण हुआ।
लेकिन ये लाभ उपभोक्ता को सीधे नहीं मिले, बल्कि अधिकतर सरकार व बड़े उद्योग को ही मिले।
10. उपभोक्ता के नज़रिये से GST की असफलताएँ
1. “One Nation, One Tax” का वादा अधूरा—पेट्रोल, बिजली, शराब बाहर।
2. स्लैब की बहुलता—सरलता नहीं आई।
3. टैक्स कलेक्शन दोगुना से भी अधिक, पर आम आदमी की जेब पर राहत नहीं।
4. बीमा प्रीमियम व आवश्यक वस्तुओं के दाम बढ़ना।
5. बार-बार दर बदलाव—स्थिरता का अभाव।
11. अब क्या किया जा सकता है
• सिर्फ 1–2 स्लैब रह जाएँ, दरें स्थिर हों।
• पेट्रोल, बिजली, शराब जैसे बड़े क्षेत्रों को भी GST में लाया जाए।
• टैक्स घटने का लाभ उपभोक्ता तक पहुँचे, इसके लिए सख़्त निगरानी।
• Input Tax Credit पूरी तरह पास-थ्रू हो।
• स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार में कर राजस्व का बड़ा हिस्सा लगे—तभी आम आदमी को लगेगा कि उसका पैसा सही जगह जा रहा है।
12. निष्कर्ष: वादा बनाम वास्तविकता
GST ने काग़ज़ पर भारत की कर प्रणाली को आधुनिक बनाया।
लेकिन उपभोक्ता के अनुभव में यह सरल नहीं, महँगा रहा।
सरकार को रिकॉर्ड राजस्व मिला, लेकिन उपभोक्ता की जेब में राहत नहीं आई।
बीमा प्रीमियम, FMCG, दवाइयाँ—हर जगह बोझ बढ़ा।
आठ साल बाद जाकर कुछ सुधार हुए (जैसे बीमा पर 0% GST), जो पहले ही दिन होना चाहिए था।
इसलिए कहा जा सकता है कि:
• GST एक “ऐतिहासिक” सुधार था,
• लेकिन “अधूरा और जल्दबाज़ी में” लागू किया गया,
• और इसका सबसे बड़ा खामियाजा उपभोक्ता ने उठाया।
अगर भविष्य में सरकार सचमुच “One Nation, One Tax” का सपना साकार करना चाहती है तो उसे उपभोक्ता के हित को केंद्र में रखना होगा—क्योंकि सरकार तो ताक़तवर है, जनता ही टैक्स देती है, वही बोझ झेलती है।

