हलधर फिर हुंकार उठे
हम लौट जाएँगे-नरेंद्र कुमार (जलंधर)
हम लौट जाएँगे
हमारा पानी वापिस दो
हमारी मिट्टी वापिस दो
हम लौट जाएँगे।
अपनी खाद ले जाओ
मारक दवाएँ ले जाओ
काली कमाई लेते जाओ
हमें हमारी ख़ुदाई वापिस दो
हम लौट जाएँगे।
तुम कहते हो हरित क्रांति से
पहले कोई तरक्की नहीं हुई
हम बताते हैं- हरित क्रांति के पहले
किसी परिवार ने कभी
कभी खुदकुशी नहीं थी उठाई
अपनी क्रांति लेते जाओ।
हमारी शांति लौटा दो
हम लौट जाएँगे।
हम कीमत माँगने नहीं हिसाब करने आए हैं।
आज के नहीं सदियों के सताए हैं।
झूठ के पुलिन्दे ले जाओ
अपने कर्ज़े ले जाओ
हमारे अंगूठे वापिस दो
हम लौट जाएँगे।
हमारा स्वच्छ जल वापिस दो
हमारी साफ मिट्टी वापिस दो
हम लौट जाएँगे।
अनुवादक- प्रदीप सिंह हिसार

