परीकथा-2: दादा जी का दस्ताना

एक थे बूढ़े दादाजी । जंगल से होकर कहीं जा रहे थे। पीछे-पीछे उनका कुत्ता भाग रहा था। चलते-चलते दादाजी के हाथ का दस्ताना गिर गया। इस बीच कहीं से एक चुहिया दौड़ती आई और दादाजी के दस्ताने में छिपकर बैठ गई और जरा दम लेकर बोली :

“अब मैं यहीं रहूंगी।”

इसी वक़्त एक मेंढक फुदकता हुआ वहां आ पहुंचा। उसने आवाज दी :

“दस्ताने में कौन रहता है ?”

“अरे, मैं हूं चुनमुन चुहिया, लेकिन तुम कौन हो ?”

“मैं फुदकू मेंढक हूं।”

“मुझे भी अन्दर आ जाने दो!

“ठीक है, अन्दर आ जाओ !”

इस तरह एक से दो हो गए । अचानक भागता हुआ एक खरगोश वहां आ पहुंचा और दस्ताने के क़रीब आकर उसने आवाज दी :

“दस्ताने में कौन रहता है ?”

“अरे, हम हैं- चुनमुन चुहिया, फुदकू मेंढक । लेकिन तुम कौन हो ?”

“मैं उड़न छू खरगोश हूं। मुझे भी अन्दर आ जाने दो !”

“ठीक है, अन्दर आ जाओ ।”

अब वे तीन हो गए। ठीक इसी वक़्त दौड़ती-दौड़ती एक लोमड़ी वहां आ पहुंची। दस्ताने के पास आकर उसने आवाज दी :

“दस्ताने में कौन रहता है ?”

“अरे, हम हैं- चुनमुन चुहिया, फुदकू मेंढक और उड़न छू खरगोश । लेकिन तुम कौन हो ?”

“मैं हूं चटक मटक लोमड़ी। मुझे भी अन्दर आ जाने दो ।”

“ठीक है ! अन्दर आ जाओ ।”

इस तरह एक-एक कर वे चार हो गए।

इसी समय दौड़ता हुआ एक भेड़िया वहां आ पहुंचा। दस्ताने के पास आकर उसने आवाज दी :

“दस्ताने में कौन रहता है ?”

“अरे, हम हैं- चुनमुन चुहिया, फुदकू मेंढक, उड़न छू खरगोश और चटक- मटक लोमड़ी ! लेकिन तुम कौन हो ?”

“मैं हूं भुक्खड़ भेड़िया । मुझे अन्दर आ जाने दो!”

“ठीक है, अन्दर आ जाओ !”

अब वे पांच हो गए। इसी तरह कहीं से भटकता हुआ जंगली सूअर वहां आ पहुंचा और दस्ताने के पास आकर उसने गुर्राते हुए आवाज दी :

“दस्ताने में कौन रहता है ?”

“अरे, हम हैं- चुनमुन चुहिया, फुदकू मेंढक, उड़न-छू खरगोश, चटक-मटक लोमड़ी और भुक्खड़ भेड़िया। लेकिन तुम कौन हो ?”

“मैं हं झगडू शूकर । मुझे भी अन्दर आ जाने दो !”

क्या मुसीबत है ! सभी दस्ताने में रहना चाहते हैं !

“देखो, अब तुम्हारे लिए जगह नहीं है ! वैसे ही यहां दम घुटा जा रहा है !”

“देख लो, किसी न किसी तरह जगह निकल आएगी। बस, ज़रा सी जगह दे दो!”

“अच्छा, तो आ जाओ । अब किया हो क्या जा सकता है !”

जंगली सूअर भी अन्दर पहुंच गया। दस्ताने में पूरे छह जानवर जमा हो गए। हिलना-डुलना तक मुश्किल हो रहा था !

और तो और । कहीं से झूमता हुआ एक भालू भी आ पहुंचा और वहां पहुंचते ही जोर से गुर्राया, फिर उसने दहाड़ते हुए आवाज़ दी :

“दस्ताने में कौन रहता है ?”

“अरे, हम हैं – चुनमुन चुहिया, फुदकू मेंढक, उड़न-छू खरगोश, चटक-मटक लोमड़ी, भुक्खड़ भेड़िया और झगडू शूकर ! लेकिन तुम कौन हो ?”

“अन्दर भीड़ तो बहुत है ! पर मेरे भर की जगह निकल ही आएगी ! मैं हूँ खौफ़नाक भालू ।”

“तुम्हें कैसे अन्दर आने दें ? अन्दर तो वैसे ही दम घुटा जा रहा है ।”

“किसी भी तरह आने दो !”

“अच्छा, बस एक सिरे पर टिक जाओ !”

यह भी अन्दर पहुंच गया। दस्ताने के अन्दर सात-सात जानवर समा गए । टस से मस होने भर की जगह न रह गई । लगा कि दस्ताना अब फटा, अब फटा ।

उधर दादाजी को ख्याल आया कि उनके हाथ का दस्ताना कहीं गिर गया है । वह उसे ढूंढ़ने के लिए वापस लौटे। कुत्ता उनके आगे-आगे भागा। वह दौड़ता गया, दौड़ता गया और आखिर उसे दस्ताना पड़ा दिखाई दिया, पर यह क्या ? दस्ताना तो हिल-डुल रहा है ! कुत्ता तब भौंकने लगा ।

दस्ताने में घुसे हुए सारे जानवर डर गए। अपनी जान बचाने के लिए वे दस्ताने से निकलकर जंगल की ओर सिर पर पांव रखकर भागे। तभी दादाजी ने वहां पहुंचकर अपना दस्ताना उठा लिया ।

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