दो भारत: वित्तीय आवंटन और जमीनी हकीकत के बीच का अंतर

 

पृष्ठभूमि

पिछले 11 वर्षों में, भारत सरकार ने विभिन्न योजनाओं के माध्यम से राज्यों को भारी मात्रा में धन आवंटित किया है। प्रधानमंत्री की लगातार राज्यों की यात्राओं के दौरान हजारों करोड़ रुपये की नई परियोजनाओं की घोषणा एक सामान्य बात हो गई है। इस अवधि में कुल मिलाकर आवंटित राशि इतनी विशाल है कि यह देश के कई वार्षिक बजट के बराबर बैठती है।

 

राज्यवार आवंटन: बिहार एक केस स्टडी

बिहार इस संदर्भ में एक उदाहरण है। 2015 में, राज्य के विधानसभा चुनावों के दौरान, सवा लाख करोड़ रुपये के आवंटन की घोषणा की गई थी। 2025 में, प्रधानमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत अकेले बिहार की 1.5 करोड़ महिलाओं के लिए 3 लाख करोड़ रुपये की घोषणा की गई। 2015 से 2025 के बीच, प्रधानमंत्री की प्रत्येक यात्रा के साथ बिहार को हर साल औसतन 1 लाख करोड़ रुपये का “तोहफा” मिलता रहा है। यह एक विरोधाभासपूर्ण स्थिति है, क्योंकि बिहार देश में आर्थिक रूप से सबसे पिछड़े राज्यों में से एक बना हुआ है, जहाँ 50% से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं और रोजगार व औद्योगिक विकास की भारी कमी है।

बिहार कोई अपवाद नहीं है। लगभग 16-17 प्रमुख राज्यों (जैसे उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु आदि) का अध्ययन करने पर पता चलता है कि पिछले 11 वर्षों में हर साल प्रत्येक राज्य को औसतन 90 हजार करोड़ रुपये से लेकर 5 लाख करोड़ रुपये तक की योजनाओं की घोषणा की गई है।

 

केंद्रीय योजनाओं के माध्यम से सीधा धन हस्तांतरण

राज्य-विशिष्ट घोषणाओं के अलावा, केंद्र सरकार की सैकड़ों योजनाएँ हैं जिनके तहत सीधे बैंक खातों में धनराशि ट्रांसफर की जाती है। सरकार के अनुसार, 450 से अधिक योजनाओं के माध्यम से 90 करोड़ से ज्यादा लाभार्थी जुड़े हैं। इनमें से कुछ प्रमुख योजनाएं और उनके आवंटन इस प्रकार हैं:

 

· प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि:

अब तक लगभग 4.5 लाख करोड़ रुपये वितरित किए जा चुके हैं। 20वीं किस्त अगस्त में दी गई और 21वीं किस्त नवंबर में दी जानी है, जिससे लगभग 9.7 करोड़ किसान लाभान्वित होंगे।

 

· मुद्रा योजना:

इस योजना के तहत अब तक 33 लाख करोड़ रुपये से अधिक की राशि बांटी जा चुकी है। केवल पिछले वित्तीय वर्ष (2023-24) में ही 5.46 करोड़ खातों में 5.41 लाख करोड़ रुपये का वितरण किया गया। कुल मिलाकर, अब तक लगभग 50 करोड़ खातों को इस योजना से जोड़ा जा चुका है।

 

· आयुष्मान भारत:

इस वर्ष के बजट में इस योजना के लिए 9,406 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो पिछले वर्ष (4,200 करोड़) से दोगुने से अधिक है। सरकार के अनुसार 37 करोड़ से अधिक लोगों के पास आयुष्मान कार्ड हैं।

इन सभी योजनाओं और राज्यवार आवंटन को मिलाकर, पिछले 11 वर्षों में सीधे बैंक ट्रांसफर और योजना घोषणाओं के माध्यम से वितरित की गई कुल राशि 90 लाख करोड़ रुपये को पार कर गई है। यह राशि इस अवधि के दौरान के कुल केंद्रीय बजट के योग से कहीं अधिक है।

 

आरबीआई के रिजर्व में गिरावट:

एक चिंताजनक प्रवृत्ति

इतनी बड़ी मात्रा में धन के वितरण के पीछे के स्रोत पर सवाल उठता है। इस संदर्भ में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के संचित कोष (Contingency Fund) और एसेट डेवलपमेंट फंड में आई भारी गिरावट एक महत्वपूर्ण बिंदु है।

 

· 2014-15 में:

कंटिंजेंसी फंड 2.32 लाख करोड़ रुपये और एसेट डेवलपमेंट फंड 21,761 करोड़ रुपये था। केंद्र सरकार को 65,898 करोड़ रुपये का डिविडेंड ट्रांसफर किया गया।

 

· 2018-19 के बाद:

स्थिति में बदलाव आना शुरू हुआ। एसेट डेवलपमेंट फंड शून्य हो गया। कंटिंजेंसी फंड पहली बार 2 लाख करोड़ से नीचे गिरकर 1.96 लाख करोड़ रुपये रह गया, जबकि केंद्र सरकार को डिविडेंड ट्रांसफर बढ़कर 1.75 लाख करोड़ रुपये हो गया।

 

· वर्तमान स्थिति (2023-24):

कंटिंजेंसी फंड घटकर मात्र 44,862 करोड़ रुपये रह गया है, एसेट डेवलपमेंट फंड अभी भी शून्य है, जबकि केंद्र सरकार को डिविडेंड ट्रांसफर बढ़कर 2.68 लाख करोड़ रुपये हो गया है।

इस प्रकार, बैंकिंग प्रणाली को सुदृढ़ रखने के लिए बनाए गए RBI के बफर फंड्स में भारी कमी आई है, जबकि सरकार को ट्रांसफर की जाने वाली राशि में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

 

सरकारी खर्च और जमीनी आय में विसंगति

सरकार ‘मैक्सिमम गवर्नेंस, मिनिमम गवर्नमेंट’ का नारा देती है, लेकिन तथ्य कुछ और ही कहानी बताते हैं। पिछले बजट में केंद्र सरकार का कुल व्यय लगभग 50 लाख करोड़ रुपये था, जिसमें से प्रशासनिक खर्च (दफ्तर, वेतन, भत्ते) के लिए 7 लाख करोड़ रुपये से अधिक का प्रावधान था। हाल ही में, केंद्रीय कर्मचारियों को 3% महंगाई भत्ता देने के ऐलान से सरकार पर 10,000 करोड़ रुपये से अधिक का अतिरिक्त वित्तीय बोझ आएगा।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतनी बड़ी मात्रा में धन वितरण के बावजूद आम लोगों की आय में उल्लेखनीय सुधार क्यों नहीं दिख रहा है। सरकार के अपने आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार:

· स्वरोजगार में लगे लोगों की औसत मासिक आय केवल 13,279 रुपये (लगभग 442 रुपये प्रतिदिन) है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह आय प्रतिदिन मात्र 380 रुपये (मासिक 11,422 रुपये) है।

· नियमित वेतनभोगी कर्मचारियों की औसत मासिक आय 20,702 रुपये (लगभग 690 रुपये प्रतिदिन) है।

· दिहाड़ी मजदूरों की औसत दैनिक आय 418 रुपये है, जिसमें पुरुषों को 450 रुपये और महिलाओं को केवल 296 रुपये मिलते हैं।

 

निष्कर्ष: दो भारत की कहानी

यह विश्लेषण एक ऐसी तस्वीर पेश करता है जहां एक तरफ सरकारी योजनाओं और घोषणाओं के माध्यम से अरबों-खरबों रुपये के वितरण का दावा किया जा रहा है, और दूसरी तरफ जनता की औसत आय निराशाजनक स्तर पर बनी हुई है। यह अंतर इस बात पर सवाल खड़ा करता है कि क्या यह वितरण वास्तव में उत्पादकता और आय बढ़ाने में सक्षम है, या फिर यह केवल एक “कारू का खजाना” है जो राजनीतिक लाभ के लिए बांटा जा रहा है।

इससे दो भारत की कहानी उभरती है: एक तरफ वह भारत जिसके पास दुनिया का दूसरा सबसे महंगा प्रधानमंत्री विमान और तेजी से बढ़ते अरबपति हैं, और दूसरी तरफ वह भारत जहां गरीबी और भूख के सूचकांकों में देश का स्थान ऊंचा बना हुआ है। दोनों ही मोर्चों पर भारत की ‘रफ्तार’ तेज है, लेकिन परिणाम एकदम विपरीत हैं।

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