राजस्थान मेडिकल काउंसिल घोटाला: डिग्री के बिना डॉक्टर और जानलेवा लापरवाही
[विचारवाणी डेस्क]
जब आप किसी डॉक्टर के चैम्बर में जाते हैं, तो दरवाज़े पर लगे ‘एमबीबीएस’, ‘एमडी’ के पट्ट पर एक सहज विश्वास होता है। यह विश्वास ही स्वास्थ्य सेवा की नींव है। लेकिन राजस्थान मेडिकल काउंसिल (RMC) का ताज़ा घोटाला इसी नींव पर कुठाराघात है। यह खुलासा कि सिर्फ बारहवीं पास करने वाले लोगों को ‘गायनाकॉलोजिस्ट’ और ‘सर्जन’ के रूप में पंजीकृत किया गया, सिर्फ एक प्रशासनिक भ्रष्टाचार का मामला नहीं है; यह आम जनता के स्वास्थ्य और जीवन के साथ खिलवाड़ है।
जमीनी सच्चाई: नकली डिग्रियां, नकली डॉक्टर, असली खतरा
जांच में पता चला है कि राजस्थान मेडिकल काउंसिल ने बिना किसी वेरिफिकेशन के, नकली एनओसी और जाली डिग्रियां जमा कराने वाले सैकड़ों लोगों को डॉक्टरों की सूची में शामिल कर लिया। सोचिए, वह व्यक्ति जिसके पास मेडिकल की कोई डिग्री नहीं है, वह आपके या आपके परिवार के सदस्य का ऑपरेशन कर रहा है, गंभीर बीमारियों का मिथ्या इलाज कर रहा है, और जानलेवा दवाइयां लिख रहा है। यह दुःस्वप्न सच हो गया है। यह घोटाला सिर्फ कागजात का नहीं, बल्कि लोगों के शरीर और जिंदगियों से खिलवाड़ का है।
यह घोटाला क्यों संभव हुआ?
यह सवाल सिस्टम के सारे रक्षातंत्रों पर सवाल खड़ा करता है।
1. नींद में चूक या साठगांठ? क्या काउंसिल के अधिकारी इतने लापरवाह हो सकते हैं कि मेडिकल डिग्री जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ की जांच तक न करें? या फिर यह एक संस्थागत साठगांठ का नतीजा है, जहां रिश्वत के बदले जानलेवा खेल खेला जा रहा था?
2. अप्रचलित और टूटी व्यवस्था: आज के डिजिटल युग में भी, कई राज्य मेडिकल काउंसिल्स के बीच आपसी डेटा का कोई एकीकृत सिस्टम नहीं है। एक राज्य से दूसरे राज्य में रजिस्ट्रेशन के लिए अभी भी मैन्युअल ‘एनओसी’ पर निर्भरता है, जिसे आसानी से नकली बनाया जा सकता है।
3. जवाबदेही का अभाव: ऐसे घोटालों में, नकली डॉक्टरों के खिलाफ तो कार्रवाई होती है, लेकिन उन अधिकारियों पर, जिनकी लापरवाही या मिलीभगत से यह संभव हुआ, शायद ही कोक्त कार्रवाई होती दिखती है।
क्या यह सिर्फ राजस्थान की समस्या है?
बिल्कुल नहीं। राजस्थान का मामला तो बस एक खिड़की है, जिससे पूरे देश की मेडिकल रेगुलेटरी व्यवस्था की कमजोरियां दिख रही हैं। अगर राजस्थान में यह संभव हुआ, तो यह गारंटी कौन दे सकता है कि दूसरे राज्यों की मेडिकल काउंसिलें पूरी तरह पाक-साफ हैं? यह घोटाला एक राष्ट्रीय चेतावनी है।
अब आगे क्या? सख्त कार्रवाई और सिस्टम में सुधार जरूरी
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए, सिर्फ जांच और वादों से काम नहीं चलेगा। जनता के विश्वास को फिर से कायम करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे:
· आपराधिक कार्रवाई: नकली डॉक्टरों के साथ-साथ, आरएमसी के उन सभी अधिकारियों के खिलाफ, जो इस घोटाले में शामिल पाए जाते हैं, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, जिसमें जमानत न मिलने वाले गंभीर धाराएं शामिल हों।
· राष्ट्रीय डिजिटल डेटाबेस: राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) को तुरंत सभी राज्य मेडिकल काउंसिलों को जोड़ने वाला एक केंद्रीकृत, पारदर्शी ऑनलाइन पोर्टल बनाना चाहिए। हर डॉक्टर का रजिस्ट्रेशन, योग्यता और विशेषज्ञता का ब्यौरा इस पोर्टल पर उपलब्ध हो, जिसे कोई भी नागरिक एक क्लिक में सत्यापित कर सके।
· स्वतंत्र ऑडिट: देश की सभी राज्य मेडिकल काउंसिलों का एक स्वतंत्र और विस्तृत ऑडिट कराया जाना चाहिए, ताकि पता चल सके कि और कहाँ ऐसे ‘घातक’ घोटाले छिपे हैं।
निष्कर्ष:
राजस्थान मेडिकल काउंसिल का यह घोटाला केवल भ्रष्टाचार का मामला नहीं है, बल्कि एक सभ्य समाज के लिए एक गहरा झटका है। यह हमारी संवैधानिक ‘स्वास्थ्य के अधिकार’ की धज्जियां उड़ाने जैसा है। अब समय आ गया है कि सरकार और नागरिक समाज मिलकर इस व्यवस्था को सुधारें। वरना, आज राजस्थान में किसी अनजान मरीज के साथ जो हुआ है, कल वह हमारे साथ या हमारे अपनों के साथ हो सकता है। आखिरकार, “सत्यमेव जयते” का सिद्धांत केवल किताबों तक सीमित नहीं रह सकता, इसे स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी स्थापित करना होगा।
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