जनआक्रोश की हुँकार: आरएसएस के खिलाफ उठती आवाज़ें

 

देश में मुसलमानों के साथ जुल्म की सारी हदें पार की जा रही हैं। उनके खिलाफ नफरत फैलाई जा रही है, उनकी मस्जिदों के सामने अशोभनीय व्यवहार किया जा रहा है और उन्हें बेवजह जेल की सलाखों के पीछे धकेला जा रहा है। यह सिलसिला सिर्फ मुसलमानों तक सीमित नहीं है। दलितों के साथ भी यही चल रहा है, जहाँ आज भी मंदिर में प्रवेश करने पर उन पर झूठे आरोप लगाए जाते हैं, उनकी पिटाई की जाती है और उनकी नीची जाति होने के कारण उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है। दलित बेटियों के साथ दुष्कर्म किया जाता है और फिर अपराध का दोषी भी उसी के परिवार को ठहरा दिया जाता है।

यह मामला केवल मुसलमानों और दलितों तक ही सीमित नहीं है। इस देश में ईसाई समुदाय के साथ भी इसी प्रकार का व्यवहार किया जा रहा है। चर्चों में घुसकर तोड़फोड़ की जा रही है और उन पर जबरन धर्म परिवर्तन कराने जैसे आरोप लगाए जा रहे हैं। यह लगातार जारी सिलसिला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) द्वारा फैलाई जा रही नफरत का परिणाम है।

महाराष्ट्र में जन आन्दोलन और RSS के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया और संविधान बचाने का संकल्प लिया गया। इस नफरत की जड़ को खत्म करने के लिए महाराष्ट्र की सड़कों पर एक ऐतिहासिक नज़ारा देखने को मिला। लाखों लोगों ने आरएसएस के कार्यालय की ओर कूच किया और यह स्पष्ट कर दिया कि यह देश संविधान से चलेगा और संविधान की धज्जियां उड़ने नहीं दी जाएंगी। इस विशाल जनआक्रोश से सत्ता इतनी भयभीत हो गई कि आरएसएस की सुरक्षा के लिए हजारों पुलिसकर्मियों को तैनात करना पड़ा। प्रदर्शनकारियों ने “आरएसएस मुर्दाबाद” और “संविधान जिंदाबाद” के नारों के साथ अपना गुस्सा जाहिर किया।

वक्ताओं ने सभा करके अपनी तमाम मांगें रखी और RSS पर कई आरोप लगाये। एतिहासिक धरती औरंगाबाद में छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा के नीचे भरे जनसैलाब ने आरोप लगाया कि आरएसएस का उद्देश्य मनुवाद को स्थापित करना है, जबकि यह देश संविधान और अंबेडकरवाद से चलेगा। वक्ताओं ने आरोप लगाया कि आरएसएस का खुद का कोई पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) नहीं है, फिर भी वह दूसरों का पंजीकरण करने का दावा करती है। उनकी प्रमुख मांगें हैं:

1. पारदर्शिता की मांग: आरएसएस को यह सार्वजनिक रूप से बताना चाहिए कि क्या वह भारत सरकार के पास पंजीकृत है। यदि हाँ, तो किस अधिनियम और धारा के तहत है? उसे अपना पंजीकरण प्रमाणपत्र जनता के सामने प्रस्तुत करना चाहिए।

2. अवैध हथियारों की जांच: आरएसएस की दशहरा पूजा जैसे कार्यक्रमों में अवैध और ऑटोमेटिक हथियार पाए जाते हैं, जो आमतौर पर केवल सेना के पास होते हैं। सवाल उठाया गया कि ये हथियार उनके पास कहाँ से आते हैं? यदि उनके पास इन हथियारों की अनुमति नहीं है, तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। यह सवाल भी उठाया गया कि यदि ये हथियार किसी दूसरे समुदाय के पास होते तो उन्हें आतंकवादी या नक्सलवादी करार दे दिया जाता।

3. वित्तीय जवाबदेही: आरएसएस जो चंदा इकट्ठा करता है और संगठन बनाता है, उसकी वैधता पर सवाल उठाए गए। क्या वह इस चंदे पर आयकर भरता है? क्या वह चंदे की लिस्ट सरकार को देता है? उनसे इन सभी वित्तीय लेन-देन की पारदर्शिता की मांग की गई।

देर से ही सही, परन्तु अब RSS के खिलाफ एक नए आंदोलन की शुरुआत हुई है। इस आंदोलन को वंचित बहुजन आगाड़ी जैसे संगठनों द्वारा चलाया जा रहा है, जो स्वयं को बाबा साहेब अंबेडकर के सिपाही और संविधान के रखवाले बताते हैं। उन्होंने दावा किया कि यह भारत के इतिहास में पहली बार है जब आरएसएस के कार्यालय पर इतना बड़ा मोर्चा निकाला गया है। उनका कहना है कि वे शांतिपूर्ण और संवैधानिक तरीके से अपना विरोध जारी रखेंगे और आरएसएस को भी संविधान का पालन करने के लिए बाध्य करेंगे। उनका विश्वास है कि आने वाले समय में अगर कोई आरएसएस को उसके मुकाम पर ले सकता है, तो वे भारत के अंबेडकरवादी हैं। यह विरोध महाराष्ट्र की सड़कों से शुरू हुआ है और इसके देशव्यापी होने की संभावना दिख रही है।

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