लोकतंत्र बनाम सत्ता
प्रस्तावना: सत्ता और समय का सबक
वक्त किसी का गुलाम नहीं होता। सितारे बदलते रहते हैं। ऊँचाई तक पहुँचना अपेक्षाकृत आसान हो सकता है, लेकिन वहाँ टिके रहना सबसे कठिन काम है। प्रकृति सिखाती है—फलों से लदा पेड़ झुक जाता है और आँधी में वही पेड़ बचता है जो लचीलापन दिखाता है। राजनीति में भी यही नियम लागू होता है।
आज भारत में लोकतंत्र और सत्ता के बीच टकराव साफ दिखाई दे रहा है। सवाल यह है कि क्या लोकतंत्र संस्थाओं को बचा पाएगा या संस्थाएँ सत्ता की कठपुतली बन जाएँगी?
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चुनाव आयोग की साख पर संकट
लोकतंत्र का स्तंभ है स्वतंत्र चुनाव। लेकिन चुनाव आयोग की भूमिका पर गंभीर सवाल उठे हैं।
• वोटर लिस्ट में गड़बड़ी,
• EVM मशीनों पर अविश्वास,
• और चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी।
मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार और ज्ञानेश कुमार पर विपक्ष का आरोप है कि वे निष्पक्षता से अधिक सत्ता के इशारों पर झुके। यदि यह सच है, तो यह लोकतंत्र के लिए घातक संकेत है।
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राहुल गांधी: उपहास से उम्मीद तक
राहुल गांधी को ‘पप्पू’ कहकर उपहास उड़ाने की रणनीति अब बेअसर होती दिख रही है। भारत जोड़ो यात्रा ने उन्हें गंभीर और दृढ़ नेता के रूप में स्थापित कर दिया है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक की पदयात्रा ने उन्हें जनता से सीधा जोड़ दिया। बेरोजगारी, महंगाई और सामाजिक तनाव से परेशान लोगों को उनमें नया विकल्प दिखाई दे रहा है।
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एजेंसियों का राजनीतिक दुरुपयोग
ED, CBI और IT जैसी एजेंसियों का काम लोकतंत्र की रक्षा है, लेकिन आज उनका इस्तेमाल विपक्षी नेताओं और पत्रकारों को डराने-चुप कराने के लिए हो रहा है।
एक उदाहरण है 4 PM यूट्यूब चैनल का। पुलवामा हमले पर सवाल उठाने पर चैनल बंद कर दिया गया। बाद में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से यह बहाल हुआ। यह दर्शाता है कि सरकार आलोचना से नहीं, बल्कि दमन से जवाब देना चाहती है।
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विदेश नीति और सुरक्षा का असमंजस
भारत की विदेश नीति में स्पष्टता का अभाव है।
• पाकिस्तान जैसे छोटे देश की चुनौतियाँ,
• चीन के साथ सीमा विवाद और झड़पें,
• ड्रोन हमले और जवानों की शहादत।
फिर भी चीन से आयात बढ़ रहा है। सवाल यह है कि क्या आर्थिक लाभ सुरक्षा से ऊपर रखा जा सकता है? सरकार जनता को वास्तविक स्थिति बताने से कतराती क्यों है?
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सत्ता और भ्रष्टाचार का गठजोड़
विपक्ष का आरोप है कि मंत्रियों के बेटे और करीबी रिश्तेदार T20 (क्रिकेट) और E20 (एथेनॉल) के कारोबार से अनुचित लाभ कमा रहे हैं।
1. सस्ता कच्चा तेल आयात होता है।
2. इसे करीबी उद्योगपतियों की रिफाइनरी में प्रोसेस किया जाता है।
3. फिर मंत्रियों के बेटों की एथेनॉल फैक्ट्रियों तक पहुँचता है।
4. अंततः जनता को महँगा पेट्रोल मिलता है।
लाभ जनता, किसानों या पर्यावरण का नहीं, बल्कि सत्ता से जुड़े परिवारों का है।
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नागरिकों की जिम्मेदारी: लोकतंत्र को बचाओ
लोकतंत्र की रक्षा सिर्फ नेताओं का काम नहीं। हर नागरिक की जिम्मेदारी है।
• सोशल मीडिया पर सच साझा करें।
• नारे बुलंद करें:
• “वोट चोर!”
• “गद्दी छोड़!”
• उन अधिकारियों का सामाजिक बहिष्कार करें जो लोकतंत्र से खिलवाड़ करते हैं।
यह देश किसी एक की बपौती नहीं है। संविधान कहता है कि जनता मालिक है और सरकार उसकी नौकर।
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निष्कर्ष: यही समय है जागने का
जब जनता चुप रहती है, तानाशाही पनपती है। जब जनता जागती है, तो सबसे मज़बूत सत्ता भी हिल जाती है। आज वही क्षण है।
लोकतंत्र बचाने की यह लड़ाई किसी एक दल की नहीं—हम सबकी है। वक्त बदलता है, सितारे बदलते हैं। और इस बार बदलते सितारे बता रहे हैं:
सत्ता जनता की है, किसी एक व्यक्ति या दल की नहीं।

