RSS और यौन शोषण के आरोप: केरल के युवा इंजीनियर आनंदु अजी की आत्महत्या ने उठाए गंभीर प्रश्न
(संदर्भ: The New Indian Express, 11 अक्टूबर 2025 – “Kerala IT professional found dead; ‘final Insta post’ alleges sexual abuse by multiple RSS members”)
प्रस्तावना
11 अक्टूबर 2025 को The New Indian Express ने एक ख़बर प्रकाशित की जिसने राष्ट्रीय मानस को झकझोर दिया।
केरल के कोट्टायम ज़िले के एक 26 वर्षीय सॉफ़्टवेयर इंजीनियर, आनंदु अजी (Anandu Aji), की आत्महत्या ने न केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी को सामने रखा, बल्कि उसने संघ (RSS) जैसी संस्था के भीतर छिपे अंधेरों पर भी रोशनी डाली।
अपने इंस्टाग्राम पोस्ट में आनंदु ने जो कुछ लिखा, वह महज़ एक आत्मकथा नहीं थी — वह आधुनिक भारत के सामाजिक और वैचारिक संकट का बयान था।
घटना का सारांश
समाचार के अनुसार, आनंदु अजी ने तिरुवनंतपुरम के एक लॉज में आत्महत्या कर ली। आत्महत्या से कुछ घंटे पहले उनका एक निर्धारित (scheduled) इंस्टाग्राम पोस्ट स्वतः प्रकाशित हुआ, जिसमें उन्होंने अपने जीवन की भयावह सच्चाई साझा की।
उन्होंने लिखा:
> “I’m not angry with anyone, except one person and an organisation. The organisation is RSS (Rashtriya Swayamsevak Sangh), which my father (a very good person) made me join. That’s where I’ve suffered lifelong trauma…”
> — (The New Indian Express, 11 Oct 2025)
आनंदु ने स्पष्ट रूप से आरोप लगाया कि बचपन में उन्हें आरएसएस के एक स्थानीय सदस्य — “NM” नामक व्यक्ति — ने बार-बार यौन शोषण का शिकार बनाया। यही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि आरएसएस के प्रशिक्षण शिविरों (ITC और OTC camps) में भी उन्हें और अन्य बच्चों को शारीरिक व मानसिक अत्याचारों से गुजरना पड़ा।
व्यक्ति की त्रासदी से सामाजिक प्रश्न तक
आनंदु ने अपने अंतिम संदेश में लिखा कि वह वर्षों से डिप्रेशन और OCD (Obsessive-Compulsive Disorder) से जूझ रहे थे, और इसका मूल कारण वह यौन उत्पीड़न और संघ के भीतर का शारीरिक शोषण था।
उन्होंने यह भी कहा कि उनका पिता स्वयं एक “अच्छा व्यक्ति” था, लेकिन उसने उन्हें संघ में भेजकर अनजाने में उनकी यातना की शुरुआत कर दी।
इस वक्तव्य में दो गहरी बातें छिपी हैं—
1. संघ का पारिवारिक-सामाजिक वर्चस्व: यह दिखाता है कि समाज के कई घरों में आरएसएस सदस्यता ‘संस्कार’ के रूप में दी जाती है, बिना यह सोचे कि बच्चे पर उसका मानसिक प्रभाव क्या होगा।
2. संस्था की जवाबदेही का अभाव: जब किसी संगठन की संरचना इतनी बंद और अनुशासित हो कि भीतर की घटनाओं का कोई बाहरी साक्ष्य न बचे, तो उसमें दुरुपयोग और हिंसा की संभावनाएँ अनंत हो जाती हैं।
आरएसएस की कार्यपद्धति और अनुशासन की विडंबना
आरएसएस स्वयं को “चरित्र निर्माण” और “राष्ट्र सेवा” का संगठन कहता है। परंतु आनंदु की आत्मकथा इस छवि पर गहरे सवाल खड़े करती है।
यदि कोई बच्चा संगठन के भीतर “लाठी से पिटाई” और “यौन दमन” का अनुभव करता है, तो वह संगठन अनुशासन का प्रतीक नहीं बल्कि मनोवैज्ञानिक उत्पीड़न का कारख़ाना बन जाता है।
आनंदु ने लिखा कि आरएसएस शिविरों में “बिना कारण बच्चों को डंडों से मारा जाता था” — यह कथन महज़ हिंसा का वर्णन नहीं, बल्कि उस मानसिक तानाशाही का प्रतीक है, जहाँ ‘अनुशासन’ के नाम पर आत्मा को तोड़ा जाता है।
‘संस्कार’ से ‘संसार’ तक — नैतिक शिक्षा का प्रश्न
आनंदु की मृत्यु केवल एक संस्थागत आलोचना नहीं, बल्कि भारतीय समाज में यौन शिक्षा की अनुपस्थिति की ओर भी संकेत करती है।
उन्होंने अपने अंतिम संदेश में माता-पिता से कहा:
> “No child in the world should go through what I suffered. Parents should ensure it… Parents should build a connection with the child, so they are able to share everything with you.”
भारत में बच्चों से जुड़ी यौन हिंसा की घटनाएँ अकसर “संस्कार” की आड़ में छिपा दी जाती हैं। आरएसएस जैसे संगठनों में, जहाँ ‘गुरु-शिष्य’ या ‘शाखा-प्रमुख’ का संबंध बेहद एकतरफ़ा और अनुशासनात्मक होता है, वहाँ बच्चों के पास शिकायत करने का कोई सुरक्षित माध्यम नहीं होता।
राजनीतिक मौन और संस्थागत अपराधबोध
अब तक आरएसएस या भाजपा की ओर से इस मामले पर कोई स्पष्ट आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।
भारत में जब भी किसी धार्मिक या वैचारिक संगठन पर ऐसे आरोप लगते हैं, तो राजनीतिक और मीडिया दोनों ही अक्सर “संरक्षणवाद” के आवरण में छिप जाते हैं।
संघ के लाखों स्वयंसेवकों में यदि एक व्यक्ति भी अपराधी है, तो संगठन की जिम्मेदारी है कि वह उस पर पारदर्शी जांच करवाए।
लेकिन अगर संगठन स्वयं किसी भी आंतरिक जांच या सार्वजनिक जवाबदेही से बचता है, तो यह “संगठन की अपराध में सहभागिता” का संकेत है।
मनोवैज्ञानिक और वैचारिक हिंसा का गठजोड़
आनंदु का यह कथन — “They carry venom. They are the real abusers.” — केवल शारीरिक उत्पीड़न की ओर संकेत नहीं करता, बल्कि वैचारिक विषाक्तता की ओर भी इंगित करता है।
आरएसएस अपने अनुयायियों के भीतर जिस “अंध-निष्ठा” और “दुश्मन-निर्माण” की मानसिकता का संचार करता है, वह अंततः व्यक्ति की स्वतंत्र सोच, करुणा और संवेदना को नष्ट कर देती है।
यही विष है — जो आनंदु जैसे अनेक संवेदनशील युवाओं के भीतर मानसिक विस्फोट बनकर फूटता है।
निष्कर्ष: व्यक्तिगत मृत्यु, सामूहिक आत्मपरीक्षण
आनंदु अजी की आत्महत्या केवल एक युवा की मौत नहीं, बल्कि संवेदनशील भारत की चेतना पर लगा एक प्रश्नचिह्न है।
यह घटना हमें झकझोरती है कि —
– क्या किसी संगठन की विचारधारा व्यक्ति की स्वतंत्रता और सुरक्षा से बड़ी है?
– क्या हमारे समाज में अब भी बच्चे और किशोर वैचारिक प्रयोगशालाओं में ‘राष्ट्रभक्ति’ के नाम पर बलिदान किए जा रहे हैं?
– और सबसे बड़ा प्रश्न: क्या हम ऐसी मौतों से सीखकर कुछ बदलना चाहते हैं, या फिर एक और “संवेदनशील मुद्दा” कहकर आगे बढ़ जाएंगे?
संदर्भ
– The New Indian Express, 11 अक्टूबर 2025 — “Kerala IT professional found dead; ‘final Insta post’ alleges sexual abuse by multiple RSS members”
– लिंक: [newindianexpress.com/states/kerala/2025/Oct/11/kerala-it-professional-dies-by-suicide-final-note-alleges-continuous-sexual-abuse-at-rss-camps](https://www.newindianexpress.com/states/kerala/2025/Oct/11/kerala-it-professional-dies-by-suicide-final-note-alleges-continuous-sexual-abuse-at-rss-camps)

